मैं कौन हूँ ?
यह एक बहुत ही विषद और गूढ प्रश्न है और न केवल एक प्रश्न ही है बल्कि प्रत्येक जीव के अन्तिम लक्ष्य की ओर पहला सार्थक कदम है। हममें से प्रत्येक इसी प्रश्न का उत्तर चाहता है, बस मार्ग और स्तर का अन्तर है।
फिर भी कुछ यूं समझिये-
"अज्ञ" से "ज्ञ" के पथ का एक पथिक हूँ। इस पर चलते-चलते कहाँ तक पहुँचा हूँ और ये यात्रा विराम कब लेगी? ये दोनों ही प्रश्न, स्वयं "ज्ञ त्व" प्रदाता और इस यात्रा के "पथप्रदर्शक" को सौंप दिए हैं, (दिखने में दो हैं, पर होने में तो एक ही है) अपनी समझ तो केवल इतनी है-
"सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में,
अब जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथों में"
** कभी-कभी कुछ जिज्ञासु और कभी कुछ कटाक्षभाव युक्त व्यक्ति पूछा करते हैं, कि मैनें Biology से B.Sc. किया फिर Clinical Psychology से M.Sc. किया और अब ज्योतिष, वास्तु, योग, शास्त्रादि के क्षेत्र में कैसे उतर गया? ये कैसी अव्यवस्था और उठापटक है? उत्तर में मैं उन्हें कहा करता हूँ- जिसे आप अव्यवस्था समझ रहे हैं वास्तव में वह किसी की सुनियोजित व्यवस्था है। इतना सुनते ही उनका अगला प्रश्न होता है, कैसे? और मेरा उत्तर होता है- जैविकी(Biology), रसायनिकी(Chemistry), अथवा भौतिकी(Physics), सभी शरीर से सम्बद्ध है, यूं भी कह सकते हैं कि जीवन के भौतिक स्तर(Materialistic Level) से सम्बद्ध हैं, सार्वदेशिक हैं, Physics का सिद्धांत हो या Biology का Classification पूरे विश्व में एक समान है। जब हम इससे गहरे उतरने का प्रयास करेंगे तो चिंतन और विचारों का विज्ञान प्रारम्भ होगा यानि की मनोविज्ञान(Psychology), और मनोविज्ञान एक शुद्ध विज्ञान नहीं है, क्योंकि यहाँ आधारभूत सिद्धांत ही यह है कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से अलग है, प्रत्येक व्यक्ति का चिंतन, व्यवहार और विचार अद्वितीय हैं यानि विज्ञान की सार्वदेशिकता की सीमाओं से कुछ बाहर निकल गए हैं, लेकिन अभी-भी कुछ सिद्धांत विज्ञान सम्मत हैं और अब, गहनतम स्तर की ओर चलने का प्रयास करेंगे तो विज्ञान की सीमाओं से बाहर शुरू होता है, पराविज्ञान (Para-Science), जिसके अंतर्गत ज्योतिष-वास्तु-योग जैसी विद्याएँ आती हैं। इस तरह यह पूरी यात्रा शरीर से मन और मन से आत्मा की ओर या यूं कहें विज्ञान से पराविज्ञान की ओर चल रही है...
** आपका अगला प्रश्न होगा, ब्रह्मर्षि वसिष्ठ ज्योतिष-वास्तु एवं योग अनुसंधान संस्थान के माध्यम से, मैं करता क्या हूँ? बहुत सरल उत्तर है, परामर्श देता हूँ, गुरु से जो कुछ मिला है, उसे बाँटने का प्रयास करता हूँ, चाहे वो ज्योतिष से सम्बद्ध हो, योग से अथवा तो किसी व्यक्तिगत समस्या से सम्बद्ध, और प्रत्येक परामर्श का केवल एक ही आधार होता है-
"सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखभागभवेद्॥"
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये॥
॥हरिः ॐ तत्सत्॥
अभिनव शर्मा "वासिष्ठ"
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