॥ॐ तत् सवितुर्वरेण्यं॥
॥ॐ श्री गुरवे नमः॥
रूद्राक्षजाबालोपनिषद
रूद्राक्षजाबालोपनिषद रूद्राक्ष से संबंधित उपनिषद है, यह उपनिषद सामवेदीय शाखा के अंतर्गत आता है, जिसमें भगवान शिव के ‘रुद्राक्षऽ की महत्ता को व्यक्त किया गया है। इस उपनिषद में रूद्राक्ष से संबंधित अनेक प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होता है जिनमें रूद्राक्ष की उत्पत्ति, उसका आकार, उसे धारण करने की विधि, उससे प्राप्त फल होने वाले फलों का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस उपनिषद में भुसुण्ड और ‘कालाग्निरुद्रऽ के मध्य होने वाले संवादों के द्वारा इसे कथा का रूप प्राप्त होता है।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति
रूद्राक्षजाबालोपनिषद के प्रारंभ में भुसुण्ड, कालाग्निरूद्र से प्रश्न करते हैं कि कृपा कर आप मुझे रुद्राक्ष के विषय में बताएं, यह क्या है? व कहां से आया? इसके क्या लाभ हैं? इन सभी तथ्यों को आप मेरे समक्ष प्रस्तुत करें। इस पर प्रभु कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं रूद्राक्ष की उत्पत्ति मेरे द्वारा ही हुई है। एक बार जब त्रिपुरासुर का वध करते हुए मेरे नेत्रों में से जल की कुछ बूंदे आँसू के रूप में पृथ्वी पर जा गिरी और वह बूंदे रुद्राक्ष के रूप में परिवर्तित हो गई, इस प्रकार रूद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।
रूद्राक्ष नाम का उच्चारण मात्र ही सभी फलों को प्रदान करने वाला है। इसके नाम को जपने से दान में दस गायों को देने जितना लाभ प्राप्त होता है। जब मैने अपनी आँखें एक हजा़र वर्षों तक खुली रखीं, तब मेरी पलकों से, पानी की कुछ बूंदें नीचे गिरी और वही रूद्राक्ष बनीं।
यह रूद्राक्ष भक्तों के समस्त पापों नष्ट कर देता है। इसे धारण करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। रूद्राक्ष को देखने भर से ही लाखों कष्ट दूर हो जाते हैं और इसे धारण करने पर करोडों लाभ प्राप्त होते हैं तथा इसे पहनकर मंत्र जाप, पाठादि करने से यह और भी ज्यादा प्रभावशाली होता है।
रूद्राक्ष वर्णन
जो रूद्राक्ष आंवले के आकार जितना बड़ा होता है, वह रूद्राक्ष अच्छा होता है। जो रूद्राक्ष एक बदारी फल (भारतीय बेरी) के आकार में होता है, वह मध्यम प्रकार का माना जाता है। जो रूद्राक्ष चने के जैसा छोटा होता है वह सबसे बुरा माना जाता है। यह रूद्राक्ष माला के आकार के बारे में मेरा विचार है।
इसके बाद वह कहते हैं कि ब्राह्मण सफेद रूद्राक्ष है, लाल क्षत्रिय है, पीला वैश्य है और काले रंग का रूद्राक्ष शूद्र है। इसलिए एक ब्राह्मण को सफेद रूद्राक्ष, एक क्षत्रिय को लाल, एक वैश्य को पीला और एक शूद्र को काला रूद्राक्ष धारण करना चाहिए।
उन रूद्राक्ष को उपयोग में लाना चाहिए जो सुन्दर, मजबूत, बड़ा, तथा कांटेदार हो और उन रूद्राक्ष को नहीं लेना चहिए जो कहीं से टूटा हो या उस पर कीडा लगा है या कांटे बिना हो।
जिस रूद्राक्ष में प्रकृतिक रूप से छिद्र बना होता है वह उत्तम होता है और जिसमें खुद छेद किया जाए वह मध्यम होता है। भगवान शिव के भक्त को रूद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए।
रूद्राक्ष के एक हजार मोती पहनना अत्यंत लाभदायक होता है। भक्त, जब सिर पर रूद्राक्ष को धारण करे तो उसे इष्ठ मंत्र जपना चाहिए, जब रूद्राक्ष को गले में पहने तो तत्पुरुष मंत्र जपना चाहिए और जब इसे वक्षस्थल और हाथ पर धारण करें तो अघोर मंत्र को जपना चाहिए यह कल्याणकारी होता है।
[आचार्यों का मत है कि न जानने वाले को गुरुमंत्र जपना चाहिए]
रूद्राक्ष के विभिन्न रूप
भुसुण्ड, फिर से ‘कालाग्निरुद्रऽ से पूछते हैं कि रूद्राक्ष माला के रूप एवं प्रभाव क्या होते हैं आप मुझे इसके सभी रहस्यों का ज्ञान प्रदान करें। ‘कालाग्निरुद्रऽ उनसे कहते हैं एकमुखी रुद्राक्ष परमतत्त्व का रूप होता है। दोमुखी रुद्राक्ष को अर्धनारीश्वर कहते हैं, इसे धारण करने से शक्ति एवं शिव दोनो की प्राप्ति होती है। तीनमुखी रुद्राक्ष अग्नित्रय है, इससे अग्नि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। चारमुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा का रूप है।
पंचमुखी रुद्राक्ष पांच मुख वाले शिव का रूप है जो हत्या जैसे पाप को भी नष्ट कर देता है। छहमुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय एवं गणेश का रूप है, इसे धारण करके भक्त धन, स्वास्थ्य, बुद्धि व ज्ञान पाता है। सप्तमुखी रुद्राक्ष सात लोकों, सात मातृशक्ति का रूप है, इसे पहनकर भक्त धन, स्वास्थ्य और मन की पवित्रता को पाता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष आठ गुणों का, प्रकृति का रूप है इसे पहन के भक्त इन देवों की कृपा प्राप्त करता है। नौमुखी रुद्राक्ष नौ शक्तियों का रूप है इसे धारण करके, भक्त को नौ शक्तियों का अनुग्रह उपलब्ध हो जाता है। दसमुखी रुद्राक्ष यम देवता का होता है।
ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र का रूप माना गया है, इसे धारण करके धन में वृद्धि की कृपा प्राप्त होती है। बारहमुखी रुद्राक्ष महाविष्णु एवं बारह आदित्यों का प्रतीक माना गया है, इसे उपयोग करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। तेरहमुखी रुद्राक्ष कामदेव का रूप माना गया है, इसे धारण करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा चौदहमुखी रुद्राक्ष रूद्र भगवान से संबद्ध है, इसे धारण करने से रोगों का नाश होता है।
रूद्राक्ष धारण के नियम
एक बार सनत्कुमारों ने कालाग्निरूद्र से पूछा, कि “हे भगवान! मुझे रूद्राक्ष पहनने के लिए नियमों को बताएँ, और उसी समय निदाघ, दत्तात्रेय, कात्यायन, भरद्वाज, कपिल, वसिष्ठ और पिप्प्लाद ऋषि वहां पहुंचते हैं और वह भी कालाग्निरूद्र से रूद्राक्ष को धारण करने के नियम को जानने की इच्छा प्रकट करते हैं।
तब कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं कि, रुद्र की अक्षि (आँखें) से उत्पन्न होने के कारण इसे रूद्राक्ष कहा गया है। इस रूद्राक्ष को छूने मात्र से ही कई पाप क्षय हो जाते हैं और इस रूद्राक्ष को धारण करने पर इसका फल करोंडों गुना बढ़ जाता है।
रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए उसे मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग कर देना चाहिए। रूद्राक्ष को पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों में धारण करने पर व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। रूद्राक्ष का आधार ब्रह्मा जी हैं, उसकी नाभि विष्णु हैं, उसके मुख रुद्र हैं और उसके छिद्र देवताओं के होते हैं।
रूद्राक्षजाबालोपनिषद महत्व
रूद्राक्षजाबालोपनिषद एक महत्वपूर्ण उपनिषद है, जो रूद्राक्ष के महत्व को स्पष्ट करता है। इस उपनिषद में रूद्राक्ष की पूर्ण विवेचना प्रस्तुत की गई है, जिसमें इसकी उत्पत्ति इसे गुण, इसके शुभ-लाभ तथा धारण करने के नियम आदि बातों को बहुत ही सरल प्रकार से व्यक्त किया गया है। इस उपनिषद का श्रवण एवं मनन करने से समस्त शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसे पढने वाला गुरू की उपाधि पाता है, मंत्रों का शिक्षक बनता है। इस उपनिषद का किसी भी समय पठन-पाठन शुभ फल की प्राप्ति कराता है तथा व्यक्ति के कई जन्मों के पापों को नष्ट कर, उसे गायत्री जाप के छह लाख मंत्रों के समान फल प्राप्त होता है।
॥हरिः ॐ तत्सत्॥
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