ज्योतिष क्या है - सिद्धांत सहित होरा रुपस्कंध्त्रयात्मकम्।
वेदस्य निर्मलं चक्षु ज्योतिष शास्त्र कल्म्षम्।
१) सिद्धांत २) संहिता ३) होरा
१) सिद्धांत :- ग्रहोंका भ्रमण नक्षत्र संचरण आदि का ज्ञान कराने वाला शास्त्र सिद्धांत ज्योतिष होता है। .
२) संहिता :- भौगोलिक, प्राकृतिक, वर्षारुतु का अयन आदि का ज्ञान कराने वाला संहिता शास्त्र होता है।
३) होरा :- प्राणिमात्र के भूत भविष्य एवं वर्तमान की ग्रह परीस्थिति के अनुसार सुख-दुःख का द्योतक है, होरा शास्त्र कहलाता है।
ज्योतिष शास्त्र वेद के निर्मल नेत्र है। जिनके द्वारा त्रिकाल दर्शन होता है। ज्योतिष शास्त्र के अठारह प्रवर्तकों में आदि प्रवर्तक है ब्रह्मा एवं अंतिम प्रवर्तक महर्षि पराशर हुए है।
(कलौ पाराशरी स्मृता) कलियुग में पाराशरी प्रमाण एवं सैधांतिक माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के प्रमुख रूप से पंचांगों का विशेष महत्व है। तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण पांच अंग प्रमुख होते है। जिसे हम पंचांग कहते है।
तिथि :- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक १५ तिथियाँ होती है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक १५ तिथियाँ होती है। शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा एवं कृष्ण पक्ष में अमावस्या तिथियाँ होती है।
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