योग आज हम सभी के लिये एक जाना पहचाना शब्द है लेकिन क्या योग का वास्तविक स्वरूप हमारे सामने है ?......नहीं। क्यों ?...... क्योंकि योग आज हमारे लिये सिर्फ शरीर को तोड़ना-मरोड़ना (योगासन), श्वास को लेना-छोड़ना (प्राणायाम), कुछ निगलना-निकालना (वमनादि षट्कर्म) मात्र बनकर रह गया है जबकि ये काम नट और खेल तमाशे दिखाने वाले ज्यादा अच्छे ढ़ग से कर सकते हैं। ये लोग रस्सी पर चल सकते हैं वह भी ढ़ोल नगाड़ों के शोर में (अद्भुत एकाग्रता), ये तीन-चार दिनों तक मिट्टी में गड्डा खोदकर उसमें रह सकते हैं और सकुशल बाहर भी निकल आते हैं (अद्भुत प्राणायाम), ये सैकड़ों लोगों के देखते-देखते लौहे के ठोस गोले को निगल जाते हैं और आसानी से बाहर भी निकाल देते हैं (वमनादि षट्कर्म)। परन्तु ये लोग योगी या योगाचार्य तो नहीं हैं अर्थात् जो स्वरूप आज हम लोग अपने चारों ओर देख रहें हैं ये योग का वास्तविक स्वरूप नहीं है। तो क्या है योग का वास्तविक स्वरूप ? योग शब्द ‘युज्’ धातु से बना है और योग शब्द का अर्थ है जोड़ना - मिलाना परन्तु किसे.......जीवात्मा व परमात्मा को।
योग के आठ अंग हैं:-
1 यम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह)
2 नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान)
3 आसन (शरीर की स्थिरता/नियंत्रण)
4 प्राणायाम (प्राणों का नियमन)
5 प्रत्याहार (चित्त की वृत्तियों का एकत्रण)
6 धारणा (साध्य)
7 ध्यान (साधन)
8 समाधि (साध्य की प्राप्ति आर्थात् पूर्णता)।
इन आठ अंगों से होते हुए जिसने पूर्ण योग प्राप्त कर लिया वह योगी हो जाता है, ऐसा योगी केवल स्वयं का उद्धार कर पाता है। ऐसे योगियों में विरले योगी दूसरों को योगी बनाने की सामर्थ्य विकसित कर पाते हैं और तब वे योगाचार्य कहे जा सकते हैं।
ऐसे योगी ओर योगाचार्य आज भी प्रकट और गुप्त दोनों रूपों से धरती पर रह रहे हैं परन्तु सभी का ऐसा सौभाग्य (पात्रता) नहीं है कि इनका सान्निध्य प्राप्त हो। लेकिन फिर भी एक व्यक्ति के बारे में, मैं यहाँ बताने जा रहा हूँ जो कोई योगी नहीं हैं, लेकिन उनके जीवन से आपको योग की वास्तविक सामर्थ्य का अनुमान सहज ही हो जायेगा और वह व्यक्ति है स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपिता श्री मोहनदास करमचंद गाँधी। जैसा कि मैं पहले बता चुका हूँ कि मो. क. गाँधीजी कोई योगी नहीं थे, परन्तु योग के आठ अंगों में से यम के केवल दो सूत्रों, सत्य और अहिंसा को उन्होनें प्रयोग के तौर पर अपने जीवन में उतारा और उनका व्यवहार, रीति-नीति बदलते चले गये। सत्य और अहिंसा से वे विशालता को प्राप्त करते चले गये और इतने विशाल हो गये कि आज ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में सत्य और अहिंसा के सबसे बड़े अनुयायी के रूप में उन्हें जाना जाता है।
अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में यूनियन स्क्वायर नामक एक स्थान है जहाँ पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिकी लोग अमानवीयता व असमानता का विरोध करने के लिए एकत्रित होते हैं। वैश्विक मानवता व समानता के प्रतीक के रूप में वहाँ कुछ ऐसे लोगों की प्रतिमाएँ स्थापित की गई हैं जिन्होनें मानव जाति के लिए कोई महान् कार्य किया हो जैसे अब्राहम लिंकन, किंग मार्टिन लूथर, मो. क. गाँधी आदि। मो. क. गाँधीजी की प्रतिमा का वहाँ स्थापित किया जाना इस बात का प्रमाण है कि गाँधीजी आज एक वैश्विक चिंतन बन चुके हैं, और ये प्रभाव है सत्य और अहिंसा के पूर्ण पालन का। ऐसे अनेक व्यक्ति भारत और सम्पूर्ण विश्व में हैं जिन्होनें ऐसे सूत्रों के पालन से महानता को प्राप्त किया है, जबकि इनमें से अधिकांश योग के शब्द से भी परिचित नहीं हैं तो जो लोग वास्वत में योग के स्वरूप से जुड़े हैं उनकी महानता और सामर्थ्य को समझ पाना हम लोगों के लिये संभव है ? मुझे लगता है कि योग की सामर्थ्य को बिना गुरूकृपा के समझना असम्भव है। योग का तत्व बिना शिवकृपा के प्राप्त नहीं किया जा सकता है इसीलिए भगवान शिव को योगीश्वर कहा गया है व शिवलिंग से श्रेष्ठ योग का कोई प्रतीक नहीं है।
इसलिये अगली बार जब आप किसी को योगी या योगाचार्य का सम्बोधन दें तो विचार अवश्य करें।
.
.
.
अभिनव शर्मा "वसिष्ठ"
No comments:
Post a Comment