मनुष्य जन्म के बाद से आनंद की तलाश में भटकता रहता है, लेकिन जीवन से संतुष्ट नहीं हो पाता | उसे जीवन तो मिलता है, लेकिन जीवन जीने का ढंग नहीं सिखाया जाता | जीवन जीने की रीति और ढंग सिखाने के लिए गुरु ही परमात्मा के प्रतिनिधि होते हैं | गुरु ही हमें जीवन दर्शन देते हैं, जिसके माध्यम से हम अपनी क्षमताओं को निखारते हैं | गुरु अपने विचारों और उपदेशों से सामाजिक और आध्यात्मिक क्रांति करते है | गुरु के वचनों और संदेशों की पवित्र गंगा में डूबकर मनुष्य का अंतःकरण शुचिता के आलोक से भर जाता है |
यह सभी जानते और मानते हैं कि हमें नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए और लगातार जीवन को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने की कोशिशें करते रहना चाहिए, हर इंसान को जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टि विकसित करनी चाहिये, लेकिन ये होगा कैसे? इसका उत्तर है ''गुरु'' | आम आदमी की समझ के लिए ''गुरु'' उस मधुमक्खी की तरह काम करते हैं, जो जीवन में ''शास्त्र'' रूपी पुष्पों का ''अनुभव'' रूपी मधुर रस- शहद बनाते हैं और अपनी ''कृपा'' वृत्ति के कारण हम तक पहुंचाते हैं | सम्भवतः इसी कारण ''गुरुगीता'' में भगवानशिव मोक्ष का मूल ''गुरुकृपा'' को ही बताते हैं (... मोक्षमूलं गुरुःकृपा || गुरुगीता- श्लोक 76).
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श्रीसद्गुरुदेव को कोटि-कोटि नमन..
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अभिनव शर्मा "वासिष्ठ"
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