कभी-कभी किसी काम को करते हुए कुछ गड़बड़ हो जाती है. अनजाने में हुई गड़बड़ियों में धैर्य से काम लेने पर ऐसे में भी कोई रास्ता निकल ही आता है. मुश्किल आने पर सोच-विचारकर ही हार को जीत में बदला जा सकता है. ऐसे टर्निंग प्वाइंट तभी आते हैं जब हम गलती सुधारने की कोशिश करते हैं. यह बात याद रहे कि हर हार भी कुछ न कुछ सिखाती है. खेल के मैदान में दो टीमें खेलती हैं. जीतने वाली टीम का कप्तान तो आखिर में खुश रहता है, पर हारने वाली टीम का कप्तान कहता है कि अगले मैच में हम अपनी कमियों को दूर करके जीतने की कोशिश करेंगे और जीतने की कोशिश ही तो जीत तक ले जाती है.
परिस्थितियाँ कितनी भी विषम हों. यदि हम घबराकर और सिर पकड़कर बैठ गए तो इससे काम नहीं चलेगा. जो हो गया उसे भूलकर आगे सोचें कि अब क्या किया जा सकता है. निश्चित रूप से कोई न कोई हल निकल ही आएगा. आज हम जितने भी सफल व्यक्तियों के बारे में पढ़ते हैं. इनके बारे में जानने पर हमें यही पता लगता है कि एक समय में इन्होंने भी काफी संघर्ष किया है. यह कोई अपने पहले प्रयास में ही सफल होकर निरंतर आगे नहीं बढ़ते रहे. इन्होंने भी असफलता का मुँह देखा, लेकिन फिर उसी तत्परता से उठ खड़े हुए और परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. तभी तो किसी समझदार व्यक्ति ने कहा है- 'सफलता का कोई विकल्प नहीं और तुम्हारा कठिन परिश्रम तुम्हे अवश्य सफल बनाएगा.'
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