॥ ॐ तत् सवितुर्वरेण्यं ॥
॥ ॐ श्री गुरवे नमः ॥
कहते हैं कि घूरे के दिन भी बदलते हैं तो इंसान के क्यों नहीं। कहावत सच तो है लेकिन लंबा इंतजार करने से अच्छा है यदि आपकी कुंडली सही है तो रत्न धारण करने से अच्छी सफलता मिल सकती है। लेकिन रत्न धारण करने से पहले किसी पारंगत ज्योतिषी से सलाह लेना आवश्यक है।
आजकल कई ज्योतिषी राशि के अनुसार रत्न पहना देते हैं जो कभी-कभी नुकसानदायक भी हो सकता है। आप इस राशि के हैं तो यह रत्न पहन लीजिए। ऐसा कहकर वे रत्न पहना देते हैं। जबकि राशि के साथ ही राशि स्वामी की स्थिति उसके बैठने का स्थान आदि भी बहुत महत्व रखते हैं। जातक को क्या आवश्यकता है, इस बात का ध्यान नहीं रखते।
रत्न पहनाने के पहले उस ग्रह की नवांश व अन्य वर्गों में क्या स्थिति है, उसकी डिग्री क्या है? यह देखना जरूरी है। तभी जाकर सही रत्न पहनकर भरपूर लाभ उठाया जा सकता है।
कहते हैं कि घूरे के दिन भी बदलते हैं तो इंसान के क्यों नहीं। कहावत सच तो है लेकिन लंबा इंतजार करने से अच्छा है यदि आपकी कुंडली सही है तो रत्न धारण करने से अच्छी सफलता मिल सकती है।
आपकी जन्म पत्रिका में लग्नेश मित्र राशि में हो या भाग्य में मित्र का होकर बैठा हो या पंचम में स्वराशि का हो या मित्र राशि का हो। चतुर्थ भाव में मित्र का हो या उच्च का हो तब उससे संबंधित रत्न धारण करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
भाग्य नवम भाव का स्वामी नवम में हो या स्वराशि का होकर बैठा हो या मित्र राशि का होकर लग्न, चतुर्थ, पंचम, तृतीय, दशम या एकादश में हो या उच्च का होकर द्वादश में हो तो उससे संबंधित रत्न पहनकर अच्छा लाभ उठाया जा सकता है। विद्या, संतान भाव को प्रबल करना हो तो उस भाव का स्वामी नवम में होकर मित्र राशि का हो तो उस भाव के स्वामी का रत्न व पंचम भाव का रत्न नवम भाव से संबंधित रत्न जिस उँगली में पहनते हों तो उसमें पहनने से संतान का भाग्य, विद्या दोनों बढ़ते हैं और मनोरंजन के साधनों में वृद्धि होती है, मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है। चतुर्थ भाव का रत्न भी पहनकर माता, भूमि, भवन, जनता से संबंधित कार्यों में लाभ उठाया जा सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि नवांश में नीच का न हो, नहीं तो लाभ के बजाए नुकसान ही होता है। इसी प्रकार पंचमेश विद्या विचार शुभ हो तो उस रत्न से अच्छा लाभ मिल सकता है। यदि जो रत्न पहना जाए उसकी महादशा का या अंतर्दशा चर ही हो तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।
रत्न पहनने से पहले शुभ मुहूर्त में ही रत्न बनवाना चाहिए और प्राण-प्रतिष्ठा कर पहनना चाहिए। फिर देखिए कैसे नहीं रत्न तकदीर बदलने में कामयाब होता है।
॥हरिः ॐ तत्सत्॥
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