॥ ॐ तत्. सवितुर्वरेण्यं ॥
॥ ॐ श्री गुरवे नमः ॥
II श्रीरुद्राष्टकम् II
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नमामीशमीशान निर्वाण-रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद-स्वरूपं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजे- अहं १.
निराकारामोंकार मूलं तुरीयं गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतो-अहं २.
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा ३.
चलत्कुन्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं
मृगाधीशचर्माम्बरं मुन्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ४.
प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं
त्रय: शूल निर्मूलनं शूल-पाणिं भजे-अहं भवानीपतिं भावगम्यं ५.
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानंददाता पुरारी
चिदानंद संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ६.
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजंतीह लोके परे वा नराणां
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्व-भूताधिवासं ७.
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतो-अहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं
जरा जन्म दु:खौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ८.
रुद्राष्टकम् इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शंभु: प्रसीदति ९.
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इति श्री गोस्वामी तुलसीदासकृतं श्री रुद्राष्टकं सम्पूर्णं
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