जन
साधारण की यही धारणा है कि ज्योतिष से भविष्य जाना जा सकता है, जीवन के विभिन्न आयामों
जैसे- स्वास्थ्य, परिवार, शिक्षा, व्यवसाय-नौकरी, विवाह-संतान, रोग-दुर्घटना
आदि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है जबकि यह अधूरी समझ है । ज्योतिष केवल यह नहीं
है कि अमुक जातक का विवाह कब होगा या अमुक जातक नौकरी या व्यवसाय में से किसे चुनना
चाहिए ? क्या केवल इन्हीं कारणों से ऋषियों ने ज्योतिष को वेद का निर्मल चक्षु कहा
होगा ? क्योंकि वेद किसी ग्रन्थ या मंत्रसंग्रह का नाम नहीं है, वेद तो स्वयं परब्रह्मस्वरुप
है, जो ऋषियों के ह्रदय में उतरा और उन्होनें इसे श्रुति के रुप में हस्तान्तरित किया
। इसका अर्थ यह निकलता है कि ज्योतिष का अवश्य ही कोई अन्य स्वरुप है ।
ज्योतिष शब्द
को विच्छेद कर आसान रुप से समझे तो बनता है ज्योति + ईश । इन दोनों शब्दों का मर्म
उपनिषदों में आए एक प्रसंग से कर सकते हैं, राजा जनक की सभा में ऋषि याज्ञवल्क्य व
देवी गार्गी के मध्य हुए शास्त्रार्थ के प्रसंग में देवी गार्गी के पूछने पर ऋषि ने
ज्योति की व्याख्या करते हुए क्रमशः सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र के बाद आत्मज्योति को
ही मूल प्रकाश बताया अर्थात् मूल ज्योति आत्मज्योति ही है तथा इस आत्मज्योति के ईश
स्वयं श्रीभगवान् हैं, क्योंकि इस आत्मज्योति के अंशी तो स्वयं परमात्मा ही हैं, हम
तो केवल अंश हैं । अतः ज्योति (आत्मज्योति) को ईश (परमात्मा) से योग कराने वाली विद्या
का नाम ही "ज्योतिष" है । ज्योतिष का मूल विषय आत्मिक उन्नति है, लौकिक उन्नति
तो सहज ही है ; ठीक वैसे ही जैसे कि भोजन करने से भूख तो शान्त होगी ही, परन्तु मूल
है रस, रक्त आदि सप्तधातुओं की पुष्टि, ताकि शरीर दीर्घायुष्य तक स्वस्थ रहे । अन्यथा
लौकिक उन्नति सम्बन्धी विषयों - सांसारिक प्रश्नों के उत्तर तो भूत-प्रेत-पिशाचों
के साधक भी आसानी से दे सकते हैं, परन्तु आत्मिक प्रगति सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर
ऐसे साधक नहीं दे सकते हैं क्योंकि स्वयं इनकी अधोगति निश्चित है ; ऐसा स्वयं श्रीभगवान्
ने गीता में संकेत किया है - अध्याय सं. ९ श्लोक सं. २५ । स्वामी श्री रामसुखदासजी
महाराज ने इस श्लोक की व्याख्या करते हुए अपने अनुभव की एक घटना भी साधक संजीवनी
(संस्करण- संवत् २०६४, पृष्ठ संख्या ६३८-६३९) में बताई है । इसीलिए स्पष्ट रुप से
यह समझने की आवश्यकता है कि ज्योतिष उत्कृष्ट विद्या है ,जो मनुष्य को लौकिक व पारलौकिक
दोनों क्षेत्रों के प्रगतिपथ प्रशस्त कर सकती है ।
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